आज सारी दु निया छोटे-छोटे गैजे ट्स में सिमट कर जेब में आ गई है. दुनिया का कोई भी कोना सिर्फ़ एक क्लिक की दूरी पर है. आज हम उन रास्तों पर भी बेखौफ़ चल पड़ते हैं जिनका ओर-छोर पता नहीं होता. हम बेफ़िक्र होते हैं, यह सोच कर कि हमारे पास गूगल मैप है. वो हमें भटकने नहीं देगा. लेकिन आज से पांच सौ बरस पहले ऐसा नहीं था. ज़रा सोचिए जब लोगों के पास ऐसे संसाधन नहीं थे तब लोग कैसे सफ़र करते होंगे. जब लोगों को यही नहीं प ता होता था कि समंदर कितने हैं, महाद्वीप कितने हैं. अमरीका किधर है. इंडोनेशिया कहां है. उस दौर में भी बहुत से साहसी लोग नाव पर सवार होकर या पैदल ही दुनिया की सैर को निकल पड़ते थे. आज तो हर जगह का नक़्शा है. गूगल मैप ने दुनिया को क़दमों में नाप कर, स मेटकर आप के मोबाइल में डाल दिया है. लेकिन पांच सौ बरस पहले तो दुनिया का ठीक-ठीक नक़्शा भी काग़ज़ पर नहीं उकेरा गया था. शुरुआती दौर के नक़्शे दुनिया की आधी-अधूरी तस्वीरें पेश करते थे. उस दौर में नक़्शा बनाने का केंद्र इटली के शहर हुआ करते थे. इटली और स्पेन के कारोबारी और अन्वेषक पूरे हौसले से दुनिया की खोज को निकलते थे. फिर...