Skip to main content

Posts

Showing posts from September, 2018

ट्रैवल गाइड, जिन्होंने बनाया दुनिया का नक़्शा

आज सारी दु निया छोटे-छोटे गैजे ट्स में सिमट कर जेब में आ गई है. दुनिया का कोई भी कोना सिर्फ़ एक क्लिक की दूरी पर है. आज हम उन रास्तों पर भी बेखौफ़ चल पड़ते हैं जिनका ओर-छोर पता नहीं होता. हम बेफ़िक्र होते हैं, यह सोच कर कि हमारे पास गूगल मैप है. वो हमें भटकने नहीं देगा. लेकिन आज से पांच सौ बरस पहले ऐसा नहीं था. ज़रा सोचिए जब लोगों के पास ऐसे संसाधन नहीं थे तब लोग कैसे सफ़र करते होंगे. जब लोगों को यही नहीं प ता होता था कि समंदर कितने हैं, महाद्वीप कितने हैं. अमरीका किधर है. इंडोनेशिया कहां है. उस दौर में भी बहुत से साहसी लोग नाव पर सवार होकर या पैदल ही दुनिया की सैर को निकल पड़ते थे. आज तो हर जगह का नक़्शा है. गूगल मैप ने दुनिया को क़दमों में नाप कर, स मेटकर आप के मोबाइल में डाल दिया है. लेकिन पांच सौ बरस पहले तो दुनिया का ठीक-ठीक नक़्शा भी काग़ज़ पर नहीं उकेरा गया था. शुरुआती दौर के नक़्शे दुनिया की आधी-अधूरी तस्वीरें पेश करते थे. उस दौर में नक़्शा बनाने का केंद्र इटली के शहर हुआ करते थे. इटली और स्पेन के कारोबारी और अन्वेषक पूरे हौसले से दुनिया की खोज को निकलते थे. फिर...

रुपये का गिरना भारत की अर्थव्यवस्था के लिए फ़ायदेमंद कैसे है?

भारतीय मुद्रा (रुपया) में ल गातार होती गिरावट के बाद बुधवार को एक अमरीकी डॉलर के मुक़ाबले भारतीय रुपया 72.88 के स्तर पर पहुंच गया है. अमरीकी डॉलर के सामने रुपये का ये अब तक का सबसे निचला एक्सचेंज रेट है. विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने मुद्रा की गिरावट के लिए मोदी सरकार की ख़राब आर्थिक नीतियों को ज़िम्मेदार ठहराया है. वहीं, केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि रुपये की गिरावट के पीछे अंतरराष्ट्रीय कारण हैं. सवाल ये भी उठ रहा है कि आख़िर केंद्र सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) मुद्रा में हो रही इस गिरावट का कोई उपाय क्यों नहीं निकाल रहे हैं. वरिष्ठ अर्थशास्त्री इला पटनायक कहती हैं, "भार तीय मुद्रा रुपये को इस समय कई तरह के दबावों से जूझना पड़ रहा है जिनमें बाहरी दबाव ज़्यादा हैं. उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों की मुद्राएं दबाव में हैं. कुछ देश इससे लड़ने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हम लोग इससे बहुत ज़्यादा लड़ने की कोशिश नहीं कर रहे हैं." इला कहता हैं, "तेल की कीमतों में वृद्धि हुई है. फेडरल रिज़र्व रेट में वृद्धि और अमरीकी सरकार से ऋण लेने की...

法律进行时:对中国进步的观察

正值 中外对话 开始发表“环境诉讼系列报道”之际,我询问了北京中伦律师事务所的国际合伙人罗伯特·刘易斯对过去十年中国在 环境法律 方面所做的努力有什么看法。   作为一个在中国工作了20年的美国律师,罗伯特·刘易斯显然很有资格对这两个国家的环境法律进行比较。他告诉我,好消息是他已经看到了“非常明显的进步”:例如在过去10年中国出现了更多的环境影响评估,尽管他们并不总是足够严格,各省的质量良莠不齐。然而,他确实看到法律可以更有效地发挥作用 的一些途径。   刘易斯提出的其中一个问题是,中国缺乏让新的环境法律具有追溯效力的政治意愿,无论是在建筑行业,还是在处理普遍存在的污染问题的过程中。   “新建筑必需符合更高的要求,”他说,“但是回过头来治理那些制造业、化工厂和发电场遗留下的环境问题十分困难。”这是一个结构性的问题:在 中国没有超 级基金追溯清理的概念。超级基金是1980年“综合环境响应,补偿和责任法”的通称。这项美国联邦法律是为净化环境、清除污染而建立的。根据法律规定,美国环境保护署有权鉴定污染当事人并强制他们进行清理。当无法找到责任方时,环保局有权使用特别信托基金清除污染。   在中国,工厂所有者应该负责清理工作,但是与美国不同的是,现在的所有人无法通过法律要求之前的所有人清理其遗留的污染。中国 过去三十年 的工业化污染地可能永远都没有人清理。   刘易斯解释说,在西方,包括美国,环境保护的进展通常会伴随着重大事件的发生。 2005年,刘易斯认为松花江的大污染事件将成为中国的一个重要里程碑:“我去了黑龙江而且对这次事件很感兴趣。我想这次事件可能像三哩岛事件那样具有重大意义”(1979年在美国的一个严重的核事故)。但最后他很失望,相关部门没 有吸取的教训 ,事故对公司的后果也可以忽略不计。 “我看了该公司的网站,”他说。 “这是一家上市公司,而且是中国石油天然气股份有限公司的子公司。该公司网站有许多的环保政策声明,由一流的律师事务所撰写。并声称在环境保护方面投入4倍的努力。我完全不为所动:任何数乘零还是零。”   在美国,污染事件发生后,责任公司的股票将会蒙受巨大损失 —— 就像英国石油公司去年在墨西哥湾的污染事故后的情况一样。“但是这家 中国公司的...